Posts

खुश तो हो ना ??

- ठीक हो न! वहाँ तुम ख़ुश तो हो?  - हाँ! - वो लाता है न तुम्हारे फूल? ले जाता है न वीकेंड पर बाहर? - हाँ! - फिर बढ़िया है. मैंने भी तुम्हारे लिए ख़ुशियाँ ही माँगा था. चलो फिर चलता हूँ. ख़ुश रहना. —- और फिर उसने बाइक स्टार्ट कर लिया. लड़की चाहती थी कि बताए उसे अब फूल उसे ख़ुश नहीं रख पाते. तुम्हारे बग़ैर अब कहीं जाने का मन नहीं होता. मुझे शहर का हर कोना तुम्हारे नहीं होने का अहसास करवाता है. अब सिर्फ़ वीकेंड होता है. इस दिन मैं और ख़ाली हो जाती हूँ!

प्रेम तुम से तब भी था अब भी है...

आपको फ़िक्र होनी चाहिए जब वो जो बग़ैर आपके सोचे एक पल न रह पाये और अचानक वो लम्हें-दिन गुज़ारने लग जाए आपको सोचे बग़ैर. नहीं ऐसा नहीं है कि प्रेम कम हो गया है या कोई और आ गया है. बारहा वो आपकी नज़र-अंदाज़ियों का सिला होता है. अव्वल-अव्वल में कोशिशें होती हैं कि प्रेम बचा रह जाए. बचाने के उस दौर में आग्रह होता है, मान-मनुहार होता है, शिकायतें होती हैं मगर फिर वो दौर भी आता है कि जब सामने वाला हार मान लेता है. उन कोशिशों की भी एक मियाद होती है. इस मियाद के ख़त्म होने से पहले आपको रोक लेना होता है. थाम लेना होता है और यक़ीन दिलाना होता है कि,  “प्रेम तुम से तब भी था अब भी है. मैं रह नहीं पाउँगा तुम्हारे बग़ैर. तुम रहो और भरपूर रहो. प्रेम तो तुम ही हो जानाँ!”

इश्क जिंदा है ...

हाँ , जब उसको उसकी वाली छोड़कर जाती है तो कुछ नहीं होता। बस शौक, लगाव और इच्छाएं मर जाती है सभी। ऐसा नहीं कि मन ना हो कभी, बस दिल हट जाता है इन सबसे। हाँ फिर वो ईगो, सेल्फ रिस्पेक्ट, और ऐटिट्यूड वाला नाटक भी तो नहीं हो पाता मुझसे।   खैर तुम्हें गए अरसे बीत गए हैं, पर जिस तरह तुम्हें लिखा है और महसूस किया है अपने शब्दों में, ऐसे लगता है कल की ही बात हो।    सच कहूँ किसी और पर आज भी दिल नहीं जाता। पसंद बहुत आती हैं, पर तुम्हारी बात ना अलग थी। तुम ना सिर्फ तुम थी। इसीलिए आज तक तुम्हा री जगह कोई ले नहीं पाया। या शायद तुमने लेने ही नहीं दी। और शक नहीं करता तुम पर। लेकिन हाँ , एक झूठी सी ईमेज बनानी पड़ती है खुद में, जैसे तुम्हेँ कोई मिल गया हो मुझसे बेहतर। और तुम खुश हो उसके साथ। बस तुम्हें खुश देखना ही मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश है। पर ये भी तो कि तुम नहीं आ सकती हो अब। प्रेम के साथ कई मतलब और भी तो जुड़ गए हैं। लेकिन प्रेम तो बिना अपेक्षाओं के होता है ना, जहाँ अभिलाषाओं की भी कोई जगह नहीं होती। ऐसा कहकर मेरा मतलब कोई तुम्हारे वाला "टोंड" मारना नहीं है और हां वो &q

अधूरी कहानी ....

Image
मेरी सांसे धीरे-धीरे रूक रही होगीं। नदी की गीली रेत की तरह मेरी जिदंगी की मुट्ठी से मेरी सभी ख़्वाहिशें और सभी सपने एक - एक कर निकलते जा रहे होगें और उस पल मैं बिल्कुल भी नहीं सोचूंगा कि कुछ दिन की जिदंगी और जी लूँ। बस उस समय सब कुछ जल्दी से खत्म हो जाना चाहिए , सूरज शाम के बजाय दिन मे ही ढल जाना चाहिए। शाम के 4 बजे ही अंधेरी काली अमावस की रात हो जानी चाहिए । पक्षी मेरे ऊपर उडने की बजाय मेरे पास बैठ कर मुझे विदाई देते हुए पूछा रहें हो.... "क्यूँ पंडित ,जी ली क्या जिंदगी तूने अपने उसूलों पर ? " और वही पास में नदी किनारे बैठी होगी तुम। धीरे-धीरे मुस्करा कर मेरी कहानी को खत्म होते हुऐ देख रही होगी।

उस दिन बहुत कुछ छूट गया था ...

उस रोज़ स्टेशन पे मेरा बहुत कुछ छूट गया था! जाते हुए उसने बोला था "रोना मत" और उसके बाद आँसू थमें नही! कभी आँख से बाहर आते तो कभी पलकों के पीछे गुम कर लेता! जब मैं पलटा तो वो जा चुकी थी! सोचा रोक लूँ! पर रोकना सही न लगा! जब रिश्ते न निभे तो उन्हें पकड़ के आगे न ही बढ़े तो ही बेहतर होता है! पाँच मिनट बाद "आइ लव यू" बोलने के लिए कॉल किया थ उसने! पर उस वक़्त "आइ लव यू टू" न निकल सका मुँह से मेरे! भभक भभक के पहली बार किसी पब्लिक प्लेस पे रोया था मैं! तब पता चला के जब दुःख अंदर तक हो तो कहीं भी रोना ओक्कवर्ड नहीं लगता! लड़कियाँ शायद इसी लिए कहीं भी सहजता से रो लेती हैं! वो ख़ुश भी अंदर से होती हैं और दुखी भी! बाद में हिम्मत करके कॉल किया तो उसका कॉल नहीं उठा! मैं जानता था के अब कहानी ख़त्म हो चुकी है हमारी! पर मन में न जाने क्या खटक रहा था! दो घंटे बाद कॉल आया तो पता चला ऐक्सिडेंट हो गया है उसका! खरोंच ज़्यादा थी पर दर्द दिल में था! हम दोनो ही वापस आना चाहते थे! पर हम दोनो ही एक साथ रह नही पा रहे थे! वो एक हफ़्ते में जाने वाली थी! नए शहर! सारी यादों को भूल

एक दिन C.P पर जब ....

किसी रोज जब तुम CP पे ख़रीदने में बिज़ी होगी कोई जॉन एलिया की किताब, अचानक पीछे से आके वो गज़रा गूथ देगा तुम्हारे बालों में! पलट के तुम देख के मुस्क़ियाओगी और फिर शर्मा के चेहरे को छुपा लोगी उस किताब से जिसके पीछे जॉन साब का शेर लिखा होगा.. शर्म, वहशत, लाज, परेशानी, नाज से काम क्यों नहीं लेती तुम, वो, जी, आप ये क्या है? तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेती ?

प्रेम की ख़ामोशी ...

अच्छा सुनो ना !!! न जाने कौन से फासले है मेरे और तुम्हारे दरमियान...सब कुछ कितना ठहरा हुआ है पर जिन लम्हों में तुम मेरे साथ थी उसी में तुम्हे जी लिया...ज़िन्दगी को जी लिया. प्रेम को जी लिया..! मेरा इंतज़ार बहुत लम्बा है ..मुझे तुम्हारे पुकार की तमन्ना रहती है . एक अधूरी आस..तुम पुकार लेती तो मन कह लेता कि हाँ, मैं हूँ...तुम हो और है हमारा प्रेम! मैंने हर जगह देखा तुम्हे...सपनों में ,भीड़ में,अकेले में,मौन में,कौलाहल में..और भी पता नहीं कहाँ कहाँ..तुम ही तो हो ..!!पता नहीं किस जन्म का नाता है तुमसे.. तुम मिली...और एक कथा शुरू हुई....मेरी,हाँ ! शायद सिर्फ मेरी..!! मुझे लिखना अच्छा लगता है...और ख़ास कर तुम्हे लिखना..और जब मैं तुम्हे लिखता हूँ तो बस सिर्फ तुम ही तो होती हो .मैं तुममे मौजूद उस जीवट स्त्री के प्रेम में हूँ .! सच कहूँ तो मुझे तुमसे तब प्रेम नहीं हुआ,जब मैंने तुम्हे देखा है ..पर हाँ,मुझे प्रेम हुआ तुमसे जब मैंने तुम्हे समझा है ..और उसके बाद तो हर रोज ही मुझे तुमसे प्रेम हुआ.. नदी में तुम,रास्तो पर तुम,मंदिर में तुम ,धरती, जल और आकाश...हर जगह बस तुम...प्रेम में जब इंसान होता है